Chipko Andolan Kya Hai और Kab शुरू हुआ- चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन था। चिपको आंदोलन की पहली लड़ाई 1973 की शुरुआत में उत्तराखंड राज्य (तब उत्तर प्रदेश का भाग) के चमोली जिले में हुई। यह किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे।
एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था।
Chipko Andolan Kisne Shuru Kiya
Chipko Andolan Ka NETA
– इस आन्दोलन की शुरुवात 1973 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद्(Environmentalist Sundar Bahuguna) सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।
यह भी कहा जाता है कि कामरेड गोविन्द सिंह रावत ही चिपको आन्दोलन के व्यावहारिक पक्ष थे, जब चिपको की मार व्यापक प्रतिबंधों के रूप में स्वयं चिपको की जन्मस्थली की घाटी पर पड़ी तब कामरेड गोविन्द सिंह रावत ने झपटो-छीनो आन्दोलन (Japto cheeno Andolan) को दिशा प्रदान की।
चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।
KAB औऱ KYU हुई Chipko Andolan की शुरुआत
26 march ‘चिपको आंदोलन’ की वर्षगांठ- चिपको आंदोलन की पहली लड़ाई 1973 की शुरुआत में उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई।
- यहां भट्ट और दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल (डीजीएसएम) के नेतृत्व में ग्रामीणों ने इलाहाबाद स्थित Sports And Goods Simonds
- को 14 ऐश के पेड़ काटने से रोका।
- यह कार्य 24 अप्रैल को हुआ और दिसंबर में ग्रामीणों ने गोपेश्वर से लगभग 60 किलोमीटर दूर फाटा-रामपुर के जंगलों में
- साइमंड्स के एजेंटों को फिर से पेड़ों को काटने से रोक दिया।
क्या है चिपको | Chipko Shabd Ka Arth
चिपको एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ ‘चिपके रहने’ या ‘गले लगाने’ से है। यह उत्तर भारत की पहाड़ियों में गरीब, गांव की महिलाओं के वनों को बचाने की छवियों को उजागर करता है। जो पेड़ों को ठेकेदारों की कुल्हाड़ियों से काटने से रोकने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ पेड़ों को गले लगाती हैं, जिससे उनकी जान को भी खतरा होता है। लेकिन चिपको की बहुआयामी पहचान के परिणामस्वरूप अलग-अलग लोगों के लिए इसका अर्थ अलग-अलग हो गया है।
- कुछ के लिए, यह गरीबों का एक असाधारण संरक्षण आंदोलन है,
- वहीं कुछ के लिए, यह अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण पाने के लिए एक स्थानीय लोगों का आंदोलन है,
- जिसे पहले एक औपनिवेशिक शक्ति द्वारा और फिर भारत की स्वतंत्र सरकार द्वारा छीन लिया गया।
- अंत में यह महिलाओं का एक आंदोलन बन कर उभरा,
- जो अपने पर्यावरण को बचाने की कोशिश कर रहे थे।
- पेड़ काटने वालों को यह संदेश देना कि “पेड़ों को काटने से पहले हमारे शरीर को काटना होगा”।
- वास्तव में एक महिला आंदोलन के रूप में, इसने भारत में और कुछ हद तक दुनिया भर में पर्यावरण-नारीवाद को प्रेरित किया। Chipko Andolan Kya Hai और Kab शुरू हुआ
Chipko Andolan Ki history In Hindi चिपको आंदोलन का इतिहास और असर
1974 में वन विभाग ने जोशीमठ ब्लॉक के रैणी गांव के पास पेंग मुरेंडा जंगल में पेड़ों को काटने के लिए चुना, यह इलाका 1970 की भीषण अलकनंदा बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ था। ऋषिकेश के एक ठेकेदार जगमोहन भल्ला को 4.7 लाख रुपये में 680 हेक्टेयर से अधिक जंगल की नीलामी की गई। लेकिन रैणी गांव की महिलाओं ने महिला मंडल की प्रधान गौरा देवी के नेतृत्व में 26 मार्च 1974 को ठेकेदार के मजदूरों को बाहर निकाल दिया।
यह चिपको आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि इसमें पहली बार महिलाओं द्वारा पहल की गई, खासकर जब उनके पुरुष आसपास नहीं थे।
- रैणी की घटना ने राज्य सरकार को दिल्ली के वनस्पतिशास्त्री वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय समिति गठित करने के लिए मजबूर किया जिसके सदस्यों में सरकारी अधिकारी थे।
- इसमें स्थानीय विधायक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के गोविंद सिंह नेगी, भट्ट तथा जोशीमठ के ब्लॉक प्रमुख गोविंद सिंह रावत शामिल थे। Chipko Andolan Kya Hai और Kab शुरू हुआ
समिति की रिपोर्ट दो साल बाद प्रस्तुत की गई, जिसके कारण रैणी में अलकनंदा के ऊपरी क्षेत्र में लगभग 1,200 वर्ग किमी के हिस्से में व्यावसायिक वानिकी पर 10 साल का प्रतिबंध लगा दिया गया। 1985 में प्रतिबंध को 10 साल के लिए बढ़ा दिया गया।
CHIPKO ANDOLAN KA PRABHAV
CHIPKO ANDOLAN के प्रभाव की बात करें तो-1974 में 25 JULY को एक संघर्ष शुरू हुआ,
- जो अक्टूबर में अपने चरम पर पहुंच गया।
- इसी के चलते उत्तरकाशी के पास व्याली वन क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को काटे जाने से रोका गया।
- कुमाऊं में चिपको ने 1974 में नैनीताल में नैना देवी मेले में अपनी शुरुआत की और फिर नैनीताल, रामनगर और कोटद्वार सहित कई स्थानों पर वन नीलामी को अवरुद्ध करने के लिए यह आगे बढ़ा।
- 1977 में तवाघाट में बड़े भूस्खलन के बाद कुमाऊं में आंदोलन ने गति पकड़ी और छात्रों ने 6 अक्टूबर, 1977 को नैनीताल के शैली हॉल में नीलामी को रोक दिया।
- 28 नवंबर को, एक और विरोध करने पर छात्रों को पुलिस और कई कार्यकर्ताओं द्वारा जबरन तितर-बितर कर दिया गया।
- गिरफ्तार लोगों ने नैनीताल क्लब को आग के हवाले कर दिया और पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं।
- इस बीच टिहरी गढ़वाल में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में चिपको कार्यकर्ताओं ने मई 1977 से हेनवाल घाटी में पेड़ों की कटाई का विरोध करने के लिए ग्रामीणों को संगठित करना शुरू किया।
- उन्होंने अदवाणी और सालेत के जंगलों की रक्षा के लिए दिसंबर 1977 में विरोध किया
- और अगले साल मार्च में नरेंद्र नगर में एक जंगल की नीलामी का विरोध करने पर महिलाओं सहित 23 स्वयंसेवकों को गिरफ्तार किया गया।
- बडियारगढ़ के जंगलों को बचाने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन ने 9 जनवरी, 1979 को BAHUGUNA KO JAIL डालने के बाद गति पकड़ी।
- चिपको आंदोलन ने 1977-78 के दौरान चमोली में गतिविधियों को फिर से शुरू किया, पुलना की महिलाओं ने भायंदर घाटी में जंगलों को काटे जाने को रोका।
- 1980 में डूंगरी-पेंटोली में और 1984-85 के अंत तक बाचर में भी इसी तरह के विरोध प्रदर्शन किए गए थे।
- लेकिन तब तक, चिपको विरोध अपनी अंतिम सांस ले रहा था।
- शुरुआती फायदों के बाद, भट्ट ने वृक्षारोपण कार्य, पर्यावरण-विकास शिविरों और महिला मंगल दल (एमएमडी) में महिलाओं को संगठित करने पर अधिक समय बिताना शुरू कर दिया।
पेड़ काटने पर पूर्ण प्रतिबंध | PROTECTION OF TREE UNDER CHIPKO ANDOLAN
1977 में ब्रिटिश वनपाल रिचर्ड सेंट बार्बे बेकर से बहुगुणा के मिलने के बाद, वे एक उत्साही संरक्षणवादी बन गए और अप्रैल 1981 में, उन्होंने हिमालय में 1,000 मीटर से ऊपर पेड़ों के काटे जाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की अपनी मांग के समर्थन में अनिश्चितकालीन उपवास पर चले गए।
चिपको आन्दोलन जिसने उड़ाई INDIRA GANDHI की नींद
इंदिरा गांधी, जो उस समय प्रधान मंत्री थीं, ने इस मामले को देखने के लिए आठ सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया। हालांकि समिति ने वन विभाग और उसकी निरंतर उपज वानिकी नीति को दोषमुक्त करार दिया, सरकार ने उत्तराखंड हिमालय में व्यावसायिक कटाई पर 15 साल की मोहलत को लागू किया। Chipko Andolan Kya Hai और Kab शुरू हुआ
अधिस्थगन से बहुत पहले, हालांकि, यह स्पष्ट हो गया था कि चिपको ने व्यावसायिक वानिकी को काफी धीमा कर दिया था। जिसके चलते आठ पहाड़ी जिलों से प्रमुख वन उपज का उत्पादन 1971 में 62,000 क्यूबिक मीटर से घटकर 1981 में 40,000 घन मीटर हो गया।
चिपको आंदोलन की ताकत
THE UNQUIET WOODS के WRITER, सामाजिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार, उस समय उत्तर प्रदेश जो कि अब अलग होकर उत्तराखंड राज्य बन गया है। हिमालय में व्यावसायिक वानिकी के खिलाफ सदी के मोड़ पर वापस जाने वाले किसान विरोधों की एक लंबी श्रृंखला में चिपको नया था। CHIPKO ANDOLAN KI POORI KAHANI BY LEPANNGA.COM
1916 में ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के लोगों द्वारा व्यावसायिक उपयोग को लेकर जंगलों को खोलने के लिए “जानबूझकर और संगठित तरीके से आग लगाने पर मजबूर किया, लेकिन इसने लोगों को उनके पारंपरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया।
1916 का आंदोलन, जो उतर (जबरन श्रम) के खिलाफ एक आम हड़ताल के रूप में शुरू हुआ और फिर एक व्यवस्थित अभियान बन गया, जिसमें कुमाऊं में विशेष रूप से अल्मोड़ा में चीड़ के जंगलों को जला दिया गया, जिसके कारण 1921 में कुमाऊं के जंगल शिकायत समिति का निर्माण हुआ।
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CHIPKO ANDOLAN से JUDA TILARI KAND
गढ़वाल में एक विरोध जिसे आज भी याद किया जाता है, जिसे स्थानीय लोग कुख्यात तिलारी कांड के रूप में जानते हैं। 30 मई, 1930 को टिहरी गढ़वाल राज्य की वानिकी नीतियों के खिलाफ तिलारी में एक विशाल सत्याग्रह आयोजित किया गया था।
टिहरी के महाराजा यूरोप में थे और उनके प्रधान मंत्री चक्रधर जुयाल ने जलियांवाला बाग की घटना की पुनरावृत्ति में तिलारी विरोध को कुचल दिया। सैनिकों ने बच्चों सहित निहत्थे लोगों को गोली मार दी और कई भागने की कोशिश में यमुना में डूब गए। इसमें DOWN TO EARTH के लेख 30 अप्रैल 1993 से कुछ जानकारी ली गई है।
आन्दोलन की उपलब्धि | CHIPKO ANDOLAN KI ACHIEVMENT
इस आंदोलन की मुख्य उपलब्धि ये रही कि इसने केंद्रीय राजनीति के एजेंडे में ENVIRONMENT एक सघन मुद्दा बना दिया चिपको के सहभागी तथा कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर
डॉ.शेखर पाठक के अनुसार, “भारत में 1980 का वन संरक्षण अधिनियम और यहाँ तक कि केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन भी चिपको की वजह से ही संभव हो पाया।UTTAR PRADESH (वर्तमान उत्तराखण्ड) में इस आन्दोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आन्दोलन पूर्व में बिहार, पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य तक फैल गया था। Chipko Andolan Kya Hai और Kab शुरू हुआ
उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आन्दोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।
निष्कर्ष | CONCLUSION
तो दोस्तों ये था CHIPKO MOVEMENT की कहानी जिसने भारत में पर्य़ावरण सुरक्षा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया तथा भारत में ENVIRONMENT FRIENDLY कई RULES AND ACTS को भी लागू करवाया, इसके अलावा अगर आप भी एक पर्य़ावरण मित्र हैं तो इस पोस्ट को शेयर करें जिससे वे भी जान सकें कि कैसे हमारे पर्य़ावरण को बचाने के लिये CHIPKO ANDOLAN शुरू किया गया । CHIPKO ANDOLAN KI POORI KAHANI BY LEPANNGA.COM