Samvidhan Kya Hai-What Is Constitution- संविधान किसी देश की ऐसी सर्वोच्च विधि होती है जिसके माध्यम से उस देश का शासन-प्रशासन संचालित किया जाता है। संविधान की सर्वोच्चता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह किसी भी देश में उपस्थित अन्य कानूनों, नियमों, विनियमों इत्यादि की तुलना में प्राथमिक होता है। Samvidhan Kya Hai
- यानी यदि किसी कानून, नियम, विनियम इत्यादि की व्याख्या को लेकर कोई भी असमंजस पैदा होता है
- तो इस स्थिति में संविधान में उल्लिखित बात को महत्त्व दिया जाता है
- और संविधान का उल्लंघन करने वाली किसी भी अन्य विधि को पूर्णतः या अंशतः खारिज़ कर दिया जाता है।
प्रत्येक स्वतंत्र देश को अपना एक संविधान होता है, जो सरकार के अंग
- विधानमंडल(Legislature),
- न्यायतंत्र(Judiciary),
- कार्यपालिका(Executive) के गठन और कार्य की परिभाषा करता है ओर उसके अधिकार और जवाबदारीयों को सुनिश्चित करता है।
संविधान देश में बन रहे सभी कानून का मूल होने की वजह से उसे मूल कानून भी कहा जाता है।
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भारतीय संविधान से क्या मतलब है | Samvidhan Kya Hai
Indian Constitution kya hai– 15 अगस्त 1947 के बाद भारत देश का शासन कैसे चलेगा, सरकार कैसे चलेगी, सरकार को क्या अधिकार और क्या जवाबदारी होगी, शासन के लिए पैसे कहा से आयेंगे और खर्च कहा पर होगा, पडोशी देश के साथ व्यवहार कैसा होगा। ऐसे सभी प्रश्नों को एक संविधान की जरूरत थी, इसीलिए भारतीय Constituent Assembly का गठन हुआ।
भारत में जब औपनिवेशिक शासन अपने अंतिम पड़ाव में था, उसी दौर में भारत में Samvidhan Sabha का गठन कर दिया गया था। भारत में संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी। इसके पश्चात् 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू होने तक विभिन्न बैठक में आयोजित होती रहीं।
चूँकि 15 अगस्त, 1947 को भारत आज़ाद हो गया था, इसीलिए उसके शासन संचालन के लिए संविधान सभा ही विधायिका के तौर पर भी कार्य कर रही थी। अपनी इस यात्रा में 26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान अंगीकृत कर लिया गया था तथा उसके कुछ प्रावधान उसी दिन लागू कर दिए गए थे।
- बहरहाल, 26 जनवरी, 1950 को जो संविधान लागू हुआ था,
- उसमें 22 भाग,
- 8 अनुसूचियाँ व
- 395 अनुच्छेद थे।
- लेकिन समय के साथ-साथ भारतीय संसद द्वारा इसमें विभिन्न संशोधन किए जाते रहे और वर्तमान में भारतीय संविधान में कुल 25 भाग, 12 अनुसूचियाँ व 470 अनुच्छेद हैं। Samvidhan Kya Hai
भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble Of Indian Constitution
Bhartiya samvidhan ki Prastavna- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के समक्ष उद्देश्य प्रस्ताव 13 दिसंबर 1946 ई. को प्रस्तुत किया जो भारतीय संविधान की नीव थी। उद्देश्य प्रस्ताव को संविधान का रूप देने के लिए विभिन्न विषयों से संबंधित समितियों का गठन किया गया जिसमें सबसे प्रमुख डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में बनी 7 सदस्य वाली प्ररूप समिति थी।
इस तरह से प्रस्तावना संविधान सभा में 13 दिसंबर 1946 को तैयार कर किया गया और अंतत: 22 दिसंबर 1947 ई. को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया।
भारत में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने 18 दिसंबर 1976 को संविधान के 42 में संशोधन द्वारा ‘संप्रभु और लोकतांत्रिक’ शब्दों के साथ ‘समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए हैं और ‘राष्ट्र की एकता’ को ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ जैसे शब्दों में बदल दिया गया।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में तीन प्रकार का न्याय – सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक।
पांच प्रकार की स्वतंत्रता – अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म एवं उपासना एवं दो प्रकार की समानता – प्रतिष्ठा एवं अवसर का उल्लेख किया गया। Prastavna ka mahatva
भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble of Indian Constitution
Preamble of Indian Constitution
हम, भारत के लोग, भारत को एक [*संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य] बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और [*राष्ट्र की एकता
और अखंडता] सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (मिती मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, सवंत दो हजार छह विक्रमी) को एततद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मा समर्पित करते हैं।
Bhartiya Samvidhan Ki Prastavana
संविधान के कार्य | Works Of Constitution
- सरकार के उद्देश्यों को स्पष्ट करना।
- शासन की संरचना को स्पष्ट करना।
- नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करना।
- राज्य को वैचारिक समर्थन और वैधता प्रदान करना।
- भविष्य की दृष्टि के साथ एक आदर्श शासन संरचना का निर्माण करना।
- भारतीय संविधान के प्रकार (Types Of Indian Constitution)
- इसको संविधान का वर्गीकरण भी कहते है, यहा पर 4 प्रकार से वर्गीकृत किया है।
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Types Of Constitution | Samvidhan Kitne Prakar ke Hote Hai
- लचिलू (नम्य) (Flexible) (जिसमें आसानी से बदलाव हो सके)
- कठोर (अनम्य) (Rigid) (जिसमें बदलाव आसान न हो और, बदलाव करने के लिये कड़ी प्रक्रिया का प्रावधान हो)
- लिखित & निर्मित (Written & Enacted) (जिसे Samvidhan Sabha ने सुनियोजित तरिके से बनाया हो)
- अलिखित & विकसित (Unwritten & Evolved) (जो Samvidhan, समय के साथ विकसित हुआ हो)
भारतीय संविधान के स्रोत | Sources Of Indian Constitution
भारत शासन अधिनियम, 1935 : संघात्मक व्यवस्था, न्यायपालिका का ढाँचा, लोक सेवा आयोग, राज्यपाल का कार्यकाल, आपातकालीन उपबंध इत्यादि।
ब्रिटिश संविधान : संसदीय व्यवस्था, एकल नागरिकता, संसदीय विशेषाधिकार, द्विसदनीय व्यवस्था, विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया, विधायी प्रक्रिया, मंत्रिमंडलीय प्रणाली इत्यादि।
अमेरिकी संविधान : न्यायपालिका की स्वतंत्रता, मूल अधिकार, राष्ट्रपति पर महाभियोग, यथोचित विधि प्रक्रिया, उपराष्ट्रपति का पद, न्यायिक पुनरावलोकन का सिद्धांत इत्यादि।
फ्रांस का संविधान : स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श, गणतंत्रात्मक स्वरूप।
भूतपूर्व सोवियत संघ का संविधान : मूल कर्तव्य और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का दर्शन।
आयरलैंड का संविधान : राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन, राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति इत्यादि।
ऑस्ट्रेलिया का संविधान : संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान, समवर्ती सूची का उपबंध, व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता का उपबंध इत्यादि।
Samvidhan or Kanoon Main Antar
Constitution or Law main Difference-किस देश का संविधान उस देश की अन्य विधियों से इस अर्थ में अलग होता है कि संविधान का निर्माण एक समर्पित संविधान सभा द्वारा किया जाता है। Samvidhan Kya Hai
- संविधान निर्माण की शक्ति किसी देश की विधायिका के पास नहीं होती है।
- किसी देश की विधायिका संविधान का निर्माण करने के लिए अधिकृत नहीं होती है, बल्कि वह परिस्थितियों के अनुसार सिर्फ उसमें संशोधन कर सकती है।
- लेकिन संविधान के अतिरिक्त अन्य विधियाँ मूल रूप से देश की विधायिका द्वारा ही बनाई जाती हैं और उनमें संशोधन करने की शक्ति भी देश की विधायिका के पास ही होती है।
- इसीलिए किसी भी देश की राजव्यवस्था के संचालन में अन्य विधियों की अपेक्षा संविधान का सर्वोच्च स्थान होता है और यदि न्यायपालिका को भी किसी विधि की व्याख्या करनी होती है
- तो वह संविधान से ही तुलना करके उसकी वैधानिकता की जाँच करती है।
- यदि कोई विधि पूर्णतः या अंशतः संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन करती है, तो उस विधि को पूर्णतः या उस विधि के उस हिस्से को, जो संविधान का उल्लंघन करता है, खारिज़ कर दिया जाता है।
अतः स्पष्ट है कि संविधान किसी भी देश की वैधानिक व्यवस्था में सर्वोच्च स्थान रखता है।